भगवान भोलेनाथ का पुरानी एवं ऐतिहासिक मंदिर है जिसे कनकी के नाम से जाना जाता है जहां मंदिर से लगे हुए हसदो नदी के तट महाशिवरात्रि के दिनों में भक्तजन स्नान कर सर्वमगला मंदिर के हसदो नदी के तट से जल भरकर सावन में हमें प्रत्येक सोमवार भक्तजनओ के द्वारा बोल बम बोल बम का नारा लगाते हुए श्रद्धालु आगे बढ़ते जाते जो पैदल यात्रा किया करते है शिव शंभू को जो जल अभिषेक करते हैं
छत्तीसगढ़ में कोरबा जिले में एक छोटा सा गांव है जिसका नाम कनकी है जो हसदो नदी के तट पर बसा हुआ है जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर की दूरी पर है यहां धार्मिक स्थल ककेश्वर या चकेश्वर महादेव मंदिर के नाम पर प्रसिद्ध हैं ऐसा माना जाता है कि कोरबा के जमींदारों द्वारा 1857 के आसपास इस मंदिर को बनाया गया था
मंदिर पत्थर से बनाया गया है जहां शिव पार्वती का असंख्य चित्रण देखने को मिलता है जो बहुत खूबसूरती से सजाया गया है देवी दुर्गा का एक और प्राचीन मंदिर है मंदिर के दर्शन के लिए बहुत दूर दूर से लोग आते हैं मुख्य शिव मंदिर जो है प्रवेश द्वार के सामने हैं नंदी बैल का बना हुआ आकर्षक और सुंदर मूर्ति है ऐसा माना गया है इस बैल के कान में सच्चे मन से कुछ मांगे तो ओ भी मिल जाता है
नंदी बैल के मूर्ति से थोड़ा आगे जाने पर हमे शिवलिंग मिल जाता है जो कनकी के मुख्य मंदिर है यहां शिवलिंग पर दूध का विसर्जन होता रहता है और सुंदर आकर्षक देखने को मिलता है
यह गांव घने जंगलों से घिरा हुआ है जहां प्रवासी पक्षियों का आना जाना लगा रहता है कई पक्षियों वहां एक बहुत बड़े बरगद के पेड़ में रहते हैं यहां कई असंख्य तलाब भी पाया जाता हैं इस प्रावासी पक्षियों के प्रवासी समय के दौरान देखा गया
मंदिर की दूरी
उरगा से 12 किलो मीटर के दूरी पर स्थित हैं जहा हम बस या ऑटो, रिक्शा के सहायता से जा सकते है कोरबा से 20किलो मीटर के दूरी पर है
आइए जानते हैं कनकी का मंदिर कैसे बना
मनोज शर्मा का मानना है कि एक गाय रोजा का इस शिवलिंग पर दूध चढ़ाते थी एक दिन गाय को ऐसा करते ग्वालो ने देख लिया गुस्से में उसने जहा दूध गिर रहा था वहा डंडे से प्रहार कर दिया जैसे ही उसने डंडा मारा तुमने की आवाज आई वहा कनकी के टुकड़े बिखरे हुए दिखाई दिया जब वह की सफाई करवाई गई तो वहा एक टूटा हुआ शिवलिंग दिखाई दिया बाद में उसी जगह पर मंदिर का स्थापना किया गया
उन्होंने बताया कि कनकी टुकड़े मिलने के कारण मंदिर का नाम कानकेश्वर महादेव रखा गया मंदिर के बनने के बाद वहां गांव ही बन गया जिस गांव का नाम कनकी रखा गया हर साल सावन में यहां भक्तजनों के भीड लगती है हजारों के संख्या में श्रद्धालु यहां दर्शन के आते हैं एक महीने तक यहां लगातार मेला लगा रहता है जहा धार्मिक लोगो का भीड़ उमड़ा हुआ दिखाई देता हैं