गर्मियां आते ही बड़ों के साथ-साथ बच्चे भी वैकेशन पर जाने के लिए बेताब हो जाते हैं। ऐसे में अगर ठीक तरह से प्लानिंग न की जाए, तो उनके साथ कहीं दूर ट्रैवल करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। बच्चों के मानसिक और सामाजिक विकास को बढ़ावा देने के लिए उन्हें बाहर लेकर जाना भी जरूरी होता है। इससे वो नई-नई चीजों को देखते हैं, जिससे उनका दिमाग विकसित होता है। इसलिए हर माता-पिता को बच्चों के साथ ट्रैवल करने की परेशानियों से बचने के बजाय कुछ स्मार्ट तरीके अपनाने चाहिए, जिससे उनके विकास में कोई बाधा न आ सके।
बच्चो के कला को निखारने का समय
इसमें दो मत नहीं कि पहले की अपेक्षा गर्मी की छुट्टियों का स्वरूप आज काफी बदल चुका है। यह सिर्फ कहीं घूमने-फिरने या होमवर्क पूरा करने तक सीमित नहीं रहा, बल्कि बच्चे इस समय का भरपूर फायदा उठाने में ज्यादा रुचि रखते हैं। वे थिएटर, पॉटरी, स्विमिंग, टेनिस, बास्केटबॉल, म्यूजिक से लेकर नई भाषाएं और स्टोरी टेलिंग जैसी विधाएं सीख रहे हैं। आठ साल की मानुषि को कहानियों से खास लगाव है। वह अपने खाली समय में शौकिया तौर पर छोटी-छोटी कहानियां लिखती रहती है। एक दिन उसे किसी ने स्टोरी टेलिंग के बारे में बताया। मानुषी ने तभी तय कर लिया कि स्कूल की छुट्टियों में वह इस कला को सीखेगी। इसके लिए उसने अपने माता-पिता से बात की और बिना देर किए इसकी वर्कशॉप में अपना पंजीकरण करा लिया। मानुषी बताती है, “मैंने स्टोरी टेलिंग की तीन दिन की एक ऑनलाइन वर्कशॉप पूरी की, जिसमें मुझे बहुत मजा आया। मैं आगे भी और ऐसी ही वर्कशॉप में हिस्सा लेती रहूंगी।”
डायरी लेखन यानी खुद से बातें
प्रसिद्ध लेखिका और समाजसेवी सुधा मूर्ति को बचपन में उनकी मां हर दिन की घटनाओं को एक डायरी में नोट करने को कहती थीं। इससे ही उनमें लेखन का शौक जागा। डायरी लेखन से फिर कहानियां लिखने की भी आदत विकसित हुई।
वहीं, अमेरिकी लेखक मार्क ट्वेन के बारे में प्रचलित है कि वह हर अच्छी-बुरी घटना को डायरी में नोट करते थे। बाद में उसे ही आधार बनाकर उन्होंने कई महत्वपूर्ण किताबें तैयार कीं। लेखिका जे.के. रॉलिंग ने हैरी पॉटर का खाका सबसे पहले अपनी डायरी में ही खींचा था। एक दिन ट्रेन में जब वह अपनी डायरी उलट-पुलट रही थीं, तभी उन्हें हैरी पॉटर जैसे पात्र की रचना करने का ख्याल आया और उसे उन्होंने तुरंत डायरी में नोट कर लिया।
वहीं, लेखिका प्रीति शेनॉय कहती हैं, “अभी जब स्कूल बंद होंगे, बच्चों के पास पर्याप्त समय होगा, जिसमें वे भी कुछ नया सृजन कर सकते हैं। हम जानते हैं कि दिन भर में हर किसी के मन में हजारों अच्छे-बुरे ख्याल आते हैं। यदि बच्चे उन्हें डायरी में नोट करने की आदत डाल लें तो वे लेखन का आनंद ले पाएंगे। इतना ही नहीं, डायरी लेखन न सिर्फ उनको तनाव मुक्त करता है, बल्कि नए आइडियाज और उनके लेखन को भी सही दिशा देता है।”
बच्चों की रुचि है जरूरी
बाल मनोचिकित्सक रेणु गोयल बताती हैं, स्कूली बच्चे बहुत ही बेसब्री से गर्मी की छुट्टियों का इंतजार करते हैं। लेकिन वर्किंग पैरेंट्स और एकल परिवार के इस दौर में बच्चों के पास कुछ हफ्ते ही मस्ती के होते हैं। शेष समय टीवी के सामने या मोबाइल फोन पर ही गुजर जाता है। गेम्स और कार्टून शो फेवरेट टाइम पास बन जाते हैं। ऐसे में माता-पिता उन्हें समर कैंप या ऐसी एक्टिविटी का हिस्सा बनने के लिए प्रेरित कर सकते हैं, जिसमें बच्चों को खेल-खेल में कुछ नया सीखने को मिले।
माता-पिता इस बात का ध्यान रखें कि बच्चे को उनकी पसंद या रुचि की गतिविधियों में बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाए, न कि उन पर अपनी मर्जी थोपी जाए। बच्चे बोर होते हैं तो टेंशन न लें। उन्हें उस समय को बेहतर तरीके से इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित करें। उन्हें अच्छी किताबें पढ़ने, घर के कार्यों में हाथ बंटाने के लिए कहें। ये लाइफ स्किल्स भी उनके व्यक्तित्व विकास के लिए फायदेमंद साबित होंगी।
बढ़ता है खुद पर भरोसा
स्टोरी टेलर एवं लेखिका उषा छाबड़ा कहती हैं, आजकल के बच्चे काफी जिज्ञासु हैं। वे हर क्षण कुछ नया करना और सीखना चाहते हैं। पहले बच्चे सिर्फ कहानियां पढ़ा या सुना करते थे, लेकिन अब खुद से कहानियां सुनाने की ललक उनमें उत्पन्न हुई है। इसकी बानगी विशेषकर गर्मी की छुट्टियों में ऑनलाइन एवं ऑफलाइन स्टोरी टेलिंग वर्कशॉप में बच्चों की बढ़ती भागीदारी से देखने को मिलती है।
आज ढेरों भारतीय किस्सागो बच्चों को पारंपरिक, देशज कहानियां सुना रहे हैं। बच्चे भी जब असल जिंदगी एवं समाज से जुड़ी कहानियां सुनते हैं तो उनका ज्ञान बढ़ता है और वे खुद भी कहानी सुनाने के लिए प्रेरित होते हैं। दरअसल, कहानी सुनाना एक कला है। अच्छी कहानी सुनाने के लिए अपनी आवाज, हाव-भाव, पोस्चर पर काम करना पड़ता है। जब एक बच्चा कहानी सुनाता है तो उसका आत्मविश्वास भी कई गुना बढ़ जाता है और उसकी हिचकिचाहट कम तथा समय के साथ खत्म हो जाती है।