राजिम का माघ पूर्णिमा का मेला संपूर्ण भारत में प्रसिद्ध है। छत्तीसगढ़ के लाखों श्रद्धालु इस मेले देखने के लिए इक्काटे होते हैं। माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक पंद्रह दिनों का मेला लगता है। इसे राजिम कुंभ मेला भी कहते हैं। महानदी, पैरी और सोढुर नदी के तट पर लगने वाले इस मेले में मुख्य आकर्षण का केंद्र संगम पर स्थित कुलेश्वर महादेव का मंदिर है। हालांकि अब इस मेले को राजिम माघी पुन्नी मेला कहा जाता है। यहां लोगों के उमड़े हुए भीड़ देखने को मिलता है यह स्थान अनोखा और बहुत सुंदर है
राजिम में महानदी और पैरी नामक नदियों का संगम है। संगम स्थल पर 'कुलेश्वर महादेव का प्राचीन मंदर है। इस मंदिर का संबंध राजिम की भक्तिन माता से है। कहते हैं कि छत्तीसगढ़ राज्य के राजिम क्षेत्र राजिम माता के त्याग की कथा प्रचलित है और भगवान कुलेश्वर महादेव का आशीर्वाद इस क्षेत्र को प्राप्त है। दोनों ही कारणों से राजिम मेला आयोजित होता है।
राजीव लोचन नाम कैसे पड़ा:
Rajim Kumbh Mela : इस मंदिर के नाम से जुड़ी एक और मान्यता है जिसके अनुसार राजिम नगरी के नामकरण की मान्यताओं के अनुसार दूसरे राज के राजा कंडरा ने इस मंदिर का दर्शन किया और मंदिर में रखी मूर्ति को अपने राज में रखने के लिए लोभवश बलपूर्वक चुराकर नाव में रखकर नदी के सहारे कांकेर रवाना हुए और फिर धमतरी के पास रूद्री में अचानक नौका पलट गई और नाव और मूर्ति शिला में बदल गई। नदी में राजिम नाम की महिला को भगवान् विष्णु की एक अधूरी मूर्ति मिली जिसे उन्होंने रख लिया। इसी समय रत्नपुर के राजा वीरवल जयपाल को मंदिर निर्माण का स्वप्न आया। और राजिम बाई को मंदिर में स्थापना हेतु विष्णु मूर्ती की अनुरोध करने लगे राजिम बाई मूर्ति को मंदिर में स्थापना के लिए मान तो गई लेकिन उसने शर्त रखी की बगवान विष्णु के साथ उनका भी नाम मंदिर में जोड़ा जाए। तभी से इस मंदिर को राजिम लोचन मंदिर कहते हैं।
राजिम क्यों प्रसिद्ध है
राजिम' छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। यह पवित्र स्थान हिन्दुओं की आस्था का केंद्र है। यहाँ का माघ पूर्णिमा का मेला पूरे भारत में प्रसिद्ध है। 'राजीवलोचन मन्दिर', 'जगन्नाथ मन्दिर', 'भक्तमाता राजिम मन्दिर' और 'सोमेश्वर महादेव मन्दिर' आदि।
राजिम कुंभ कब लगता हैं
राजिम कुंभ कल्प का आगाज शनिवार को त्रिवेणी संगम में हो चुका है। माघ पूर्णिमा से 15 दिन यानी 8 मार्च महाशिवरात्रि तक अनवरत चलने वाले इस मेले में देश दुनिया के कोने से हजारों की संख्या में श्रद्धालु और साधु संत महानदी, पैरी और सोंढूर नदी के संगम में आस्था की डुबकी लगाएंगे।
राजिम किस जिलें में स्थित है
राजिम (Rajim) भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के गरियाबंद ज़िले में स्थित एक नगरपंचायत है। राजिम महानदी के तट पर स्थित का प्रसिद्ध तीर्थ है। इसे छत्तीसगढ़ का "प्रयाग" भी कहते हैं।
आपने सुना ही होगा राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयाग कहते हैं। राजिम धर्म, अध्यात्म, परंपरा और संस्कृति का संगम है। वैसे यह तीन नदियों का भी संगम है जिसके चलते इसे त्रिवेणी संगम (triveni sangam) के नाम से भी जाना जाता है। यहां महानदी, पैरी नदी और सोंढूर ये नदी मिलती है, जिसमें डुबकी लगाने ना सिर्फ हमारे देश से बल्कि विदेशों से भी लोग आते हैं। ये वही जगह है जहां भगवन राम माता सीता के वनवास के दौरान माता सीता ने भगवान शंकर की आराधना की थी। और नदी के बीचों—बीच एक रेत का शिवलिंग बनाया था। तीन नदियों के संगम के बावजूद ये स्थान आज भी आठवीं सदी का कुलेश्वर महादेव मंदिर स्थित है। जबकि यहां कितने बार बाढ़ आ चूका है. लेकिन ये मंदिर अभी तक नहीं डूबा है।
छत्तीसगढ़ी में 'पुन्नी' क्यों कहते
छत्तीसगढ़ी में 'पुन्नी' कहते हैं। कुंभ माघी पुन्नी मेला के रूप में 'राजिम कुंभ' मनाया जाता रहा है। वर्तमान समय में राजिम कुंभ मेले का महत्त्व देश भर में होने लगा है। राजिम कुंभ साधु-संतों के पहुँचने व प्रवचन के कारण धीरे-धीरे विस्तार लेता गया और यह अब प्राचीन काल के चार कुंभ हरिद्वार, नासिक, इलाहाबाद व उज्जैन के बाद पाँचवाँ कुंभ बन गया है। राजिम का यह कुंभ हर वर्ष माघ पूर्णिमा से प्रारंभ होता है और महाशिवरात्रि तक पूरे एक पखवाड़े तक लगातार चलता रहता है।
राजिम कुंभ महानदी, सोंढूर और पैरी नदियों के साझा तट की रेत के विशाल पाट में नए आस्वाद की संगत में आने, रहने और बसने का निमंत्रण देता है। पुरातन राजिम मेला को नए रूप में साल दर साल गरिमा और भव्यता प्रदान करने के संकल्प के रूप में, छत्तीसगढ़ के इस सबसे बड़े धर्म संगम में प्रतिवर्ष कुंभ आयोजन का अधिनियम विधानसभा में पारित हो चुका हैं। आस्थाओं की रोशनी एक साथ लाखों हृदयों में उतरती है। राजिम कुंभ के त्रिवेणी संगम पर इतिहास की चेतना से परे के ये अनुभव जीवित होते हैं। हमारा भारतीय मन इस त्रिवेणी पर अपने भीतर पवित्रता का वह स्पर्श पाता है, जो जीवन की सार्थकता को रेखांकित करता है। अनादि काल से चली आ रहीं परम्पराएँ और आस्था के इस पर्व को 'राजिम कुंभ' कहा जाता है।
लोगों द्वारा अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
1.राजिम मेला क्यों मनाया जाता है?
उत्तर - छत्तीसगढ़ के राजिम माता के त्याग और बलिदान की कथा प्रचिलित है कालेश्वर देता का आशीर्वाद हर तरफ फैला हुआ है
2.राजिम का पुराना नाम क्या था?
उत्तर - इस स्थान का प्राचीन नाम कमलक्षेत्र है। ऐसी माना जाता है कि सृष्टि के शुरवात में भगवान विष्णु के नाभि से निकला कमल यहीं पर स्थित था और ब्रह्मा जी ने यहीं से सृष्टि की रचना की थी। इसीलिये इसका नाम कमलक्षेत्र पड़ा।
3.राजिम में कौन कौन सी नदियों का संगम है?
उत्तर - राजिम में पैरी, सोंढूर और महानदी नदियों का संगम है
4.राजिम मंदिर का इतिहास क्या है?
उत्तर - राजिम का नाम राजीव लोचन मंदिर के नाम पर रखा गया है त्रिवेणी संगम पर शिव को समर्पित प्राचीन कुलेश्वर महादेव मंदिर भी कहा जाता है
राजिम कैसे पहुंचे
हवाई मार्ग से:- राजिम से निकटतम हवाई अड्डा रायपुर का स्वामी विवेकानन्द हवाई अड्डा है, जो 43.6 किमी दूर है। रायपुर भारत के प्रमुख शहरों से हवाई मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। इसका नई दिल्ली, मुंबई, भोपाल, पुणे, हैदराबाद, नागपुर और इंदौर से सीधा हवाई संपर्क है। रायपुर हवाई अड्डे से राजिम तक पहुँचने के लिए टैक्सी सेवाएँ उपलब्ध हैं।
ट्रेन द्वारा:- रायपुर रेलवे स्टेशन दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे क्षेत्र का एक प्रमुख जंक्शन है। इसमें भारत के लगभग सभी हिस्सों के लिए कई लंबी दूरी की और सीधी ट्रेनें हैं।
सड़क मार्ग:- राजिम सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। रायपुर (46 किमी) से नियमित बस सेवाएँ उपलब्ध हैं